असम इन दिनों बाढ़ की चपेट में है। लगभग हर साल ही असम से बाढ़ की ख़बर आती है जब ब्रह्मपुत्र का कहर बरपता है। लाखों लोगों का जीवन प्रभावित होता है। इस वर्ष भी ढाई-तीन लाख लोग विस्थापित हुए हैं।

ऐसी ही एक बाढ़ आई 1965 में। जिसके बाद भयानक सूखा पड़ा। इस सूखे ने उस इलाके को लगभग ख़त्म कर दिया जो कभी एक भरा-पूरा इलाका था। यह था असम के माजुली आइलैंड का।

इस सूखे की ताप इतनी भीषण थी कि हज़ारों साँप और कई दूसरे जीव-जंतु मर गए। वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि इस आइलैंड का अस्तित्व जल्द ही मिट जाएगा। तब अपने इलाके को बचाने के लिए जो सामने आए वे थे 16 वर्षीय जादव मोलाइ पेयांग।

प्रकृति के प्रति इस समर्पण के लिए जादव 2015 में पद्मश्री से सम्मानित भी हुए। जादव ने यह कमाल बस प्रतिदिन एक पेड़ लगाकर किया। उन्होंने बंजर भूमि के मध्य से शुरू किया और आज वहाँ 1360 एकड़ में भरा पूरा जंगल खड़ा है। कहते हैं ना कि अगर हम हर दिन एक क़दम बढ़ाएँ, बिना थके, बिना रुके, बिना हताश हुए तो बंजर ज़मीन को भी हरियाली में बदला जा सकता है। यह उसी का जीवंत उदाहरण हैं।

जादव आज भी हर दिन सुबह 3 बजे अपने घर से निकलते हैं और 5 बजे उस जगह पहुँच जाते हैं जिसकी वे इतने वर्षों से सेवा करते आए हैं। वहाँ से कुछ बीज इकट्ठे करते हैं नए पौधे लगाने के लिए।

यह जंगल आज कई वन्य प्राणियों का घर है जिसमें हाथी, बंगाली टाइगर, टाइगर, गैंडा, सरीसृप(साँप आदि), गिद्ध, जंगली सूअर आदि हैं।

जंगल कटने की बहुत सी ख़बरें हमें मिलती हैं। हताश करती हैं। लेकिन उस हताशा के बाद आगे क्या? शिकायतों का समाधान क्या? हम क्या करते हैं अपने हिस्से का?

हम चाहें तो बस एक छोटा सा क़दम अपनी तरफ़ से बढ़ा सकते हैं। जो भी हमारे लिए संभव हो। इसकी शुरुआत प्लास्टिक के कम से कम प्रयोग और घरों में कचरा अलग करने से ही की जा सकती है। तो आप अपना कल बचाने के लिए क्या कर रहे हैं?

~ Ankita Jain

Ex Research Associate, Author, Director at Vedic Vatica (Organic Agro Firm)

Photo Courtesy: Internet

News Source: India Today

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