महर्षि व्यास ने कहा है “न हिं मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचितः” अर्थात सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं।
मनुष्य सृष्टि की सर्वोपरि रचना है। 84 लाख योनियों में हमें मानव की सर्वश्रेष्ठ योनि प्राप्त हुई है, और जब कोई मानव इस योनि में आ जाता है तो मानवता का गुण उसके साथ अपने आप जुड़ जाता है।
मानव धर्म अपनाकर मनुष्य की इस श्रेष्ठतम योनि को अगर कोई वास्तविक रूप से सार्थक बना रहा है तो वो हैं नोएडा में रहने वाले अनूप खन्ना जी जो सिर्फ 5 रुपये में ज़रूरतमंदों को स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन करा कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं।
अनूप खन्ना जी ने अपने जन्मदिन पर 21 अगस्त, 2015 में अपनी माँ सरोजनी खन्ना के नाम पर इस नेक कार्य को “दादी की रसोई” का नाम दिया। अनूप जी ने अपने परिवार और कुछ लोगों के सहयोग से ‘दादी की रसोई’ की शुरुआत की। शुरू – शुरू में 10 से 12 लोग ही उनके पास भोजन करने आते थे, लेकिन अब 500 से अधिक लोग प्रतिदिन यहाँ भोजन करते हैं।
अनूप खन्ना जी नोएडा सेक्टर-17 एवं सेक्टर- 29 में दादी की रसोई के दो स्टॉल चलाते हैं, जहाँ मात्र 5 रुपए में देसी घी में बना स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन मिलता है। दादी की रसोई रोज़ाना सेक्टर-17 में सुबह 10 से 11:30 बजे एवं सेक्टर- 29 में दोपहर 12 से 2 बजे तक चलती है, जहाँ कई लोग भरपेट भोजन कर अपनी भूख मिटाते हैं।
“दादी की रसोई” में खाना फ्री भी दिया जा सकता था लेकिन पाँच रुपए केवल इसलिए रखे गए हैं ताकि खाना खाने वालों का स्वाभिमान बना रहे, उन्हें ऐसा लगे की वह मुफ्त में नहीं बल्कि पैसे देकर खाना खा रहे हैं।
आज के समय में जहाँ हर एक इंसान महंगाई के कारण परेशान है, लोगों को अपना घर का खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा है वहॉं दूसरों को खाना खिलाने के बारे में सोचना भी असंभव सा लगता है, लेकिन अनूप खन्ना जी हम सभी को गलत साबित कर ना केवल 5 रुपये में लोगों का पेट भर रहे हैं बल्कि 10 रुपये में उनके तन को ढकने के लिए कपड़े भी उपलब्ध करवा रहे हैं। महँगाई के इस दौर में 5 रुपए में भर- पेट भोजन मिलना किसी वरदान से कम नहीं है।
दादी की रसोई में प्रतिदिन खाने में चावल और अचार के साथ अलग-अलग तरह की पौष्टिक सब्जियां और दालें बनती हैं। दादी की रसोई में खाना शुद्ध देसी घी में बनाया जाता है। अनूप जी कहते हैं कि ज़रूरतमंद लोगों को खाना तो खिलाया जा सकता है लेकिन भरपेट अच्छा खाना खिलाना बहुत कठिन है।
अनूप जी के इस प्रयास से सभी लोग इतने प्रभावित हैं की ‘दादी की रसोई’ में लोग अपनी श्रद्धा से भोजन का प्रबंध भी करवाते है, जैसे परिवार के किसी सदस्य के जन्मदिन पर या किसी विशेष अवसर पर लोग, उस दिन के भोजन में अपना योगदान कर ज़रुरतमंद लोगों को भोजन करवाते हैं। खास पर्व और उत्सवों पर यहाँ पूड़ी, हलवा, मिठाई और आइसक्रीम भी मिलती है।
अनूप जी किसी भी परिवार के विशेष दिन के लिये धन लेकर खाना नहीं खिलाते, उनका मानना है कि उस परिवार के सभी लोग आयें और अपने हाथ से खाना परोसें। अपने हाथ से खाना खिलाने में उनको एक अलग आनंद मिलेगा और वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार भी दे पायेंगे।
हमारे भारत देश में प्रतिदिन लगभग 20 करोड़ लोग भूखे ही सोते है और दुनिया में भूखे सोने वालों की एक तिहाई आबादी जिस देश में रहती हो, वहाँ भूखों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराने से अधिक पुण्य का कोई काम हो ही नहीं सकता।
अनूप जी के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्हीं की विचारधारा से प्रेरित होकर वह अलग-अलग तरह के सामाजिक कार्य करते रहे हैं। उनका मानना है कि सभी लोगों को समाज के प्रति अपने दायित्व को समझना चाहिए और अपने हिस्से का योगदान देकर समाज को बेहतर बनाना चाहिए।
अनूप खन्ना जी के इस प्रयास की जितनी भी सराहना की जाये वो कम है। अगर उनकी तरह ही और लोग भी बिना किसी अपेक्षा और निस्वार्थ भाव से दूसरों की किसी न किसी रूप में मदद के लिए आगे आते रहेंगे और अपना सामाजिक दायित्व समझेंगे तो हम समाज को नई दिशा प्रदान कर पायेंगे।
अनूप खन्ना जी हम सभी के लिये एक अनूठी मिसाल हैं और आने वाली पीढ़ी के लिये प्रेरणास्रोत हैं। “दादी की रसोई” की शुरुआत कर, अनूप जी निस्वार्थ सेवा भाव के साथ समाज सेवा के इस मार्ग पर अकेले निकले थे लेकिन उनके इस नेक कार्य से प्रभावित हो आज बहुत सारे लोग उनसे जुड़ते जा रहे हैं और अपना योगदान दे रहे हैं।
मजरूह सुल्तानपुरी जी का एक शेर अनूप जी के लिये बिल्कुल सही लगता है
“मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल
मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया”
Written By: Tulika Srivastava