जब हम प्रकृति से जुड़ने की बात करते हैं, तो हम अपने बच्चों से कहते हैं कि हमें पेड़ लगाना चाहिए। हमारा सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि हम हरियाली से जुड़े। ऐसा करने से हम सोचते हैं कि हम पर्यावरण से जुड़ गए। पर ये कोशिश अधूरी कोशिश है। एक बार पर्यावरण पर चल रहे एक बालकनी विमर्श में मेरे एक जानने वाले ने कहा था कि पेड़ पौधे तो ठीक हैं, पर मुझे कीड़े मकोड़े बर्दाश्त नहीं। अभी कुछ दिन पहले चाय पीती छिपकली का एक वीडियो मैंने भी सोशल मीडिया पर सांझा किया। मुझे उस छिपकली की प्यास पर अचरज था और दूसरे मैं इसकी वैज्ञानिक व्याख्या पर चर्चा चाह रही थी क्यूंकि मेरे प्रोफ़ाइल पर कई ऐसे लोग हैं जो प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े हैं। पर लोग उस वीडियो को देखकर डर गए। कई लोगों को वो अच्छा नहीं लगा। वैसे भी छिपकली किसी को क्यूट नहीं लगती। हां उसकी जगह अगर गिलहरी या चिड़िया का वीडियो होता तो लोग उसे क्यूट कहते। मैंने वो वीडियो हटा लिया क्योंकि आजकल लोग वैसे ही परेशान हैं और क्यूं परेशान करना।

कीड़े-मकोड़े, सांप, छिपकली, केंचुएं, कनखजूरे ये सब हमारी प्रकृति और जैव विविधता का हिस्सा हैं। और उनके बारे में जानना, उन्हें समझना प्रकृति को समझने का ही एक रास्ता है। मैं जिस जगह में पली बढ़ी वहां एक समृद्ध जैव विविधता थी।मिट्टी में केंचुओं और कनखजूरों की भरमार थी। मेरे ऊपर कई बार कम्मल कीड़े चढ़े। मैंने अपने आसपास कई तरह के सांप देखे। घोंघे,जोंक, कई तरह के कीड़े देखे। टेलर बर्ड को एक बार तिनकों से पत्ते सिलकर घौंसला बनाते देखा तो रोमांच से भर गई। उसने गहरे लाल रंग के अंडे दिए। मां ने कहा छूना मत वरना चिड़िया त्याग देगी। एक दिन घौंसले में अंडे नहीं थे। ठीक पेड़ के नीचे हरे रंग का एक सांप जाते देखा। वो अंडों को खा गया था। मैं बहुत दुखी हुई। पर ऐसी घटनाएं कई बार देखी और समझा कि प्रकृति के अपने नियम और कायदे हैं और हमें उनमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। नम मिट्टी में सैंकड़ों कनखजूरे जब आप देखते हैं तो आप डर जाते हैं। मुझे वो क्यूट लगता था और मैं उसे खनक राम कहती। कितनी बार उसे हाथों पर लिया और रास्ते से परे छोड़ा।

 

कीड़ों में हमें कोई सुंदरता नहीं दिखती। पर आप कभी किसी कनखजूरे को चलते-चलते छू लेते हैं तो वो कुंडली मार लेता है। आपको कुछ नहीं करता। कुदरत का छोटे से छोटा जीव भी अपनी सुरक्षा करना जानता है ।वो आपको नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता पर हम इंसानों को जो जीव अच्छा नहीं लगता या जो हमारे सौंदर्य मानकों पर खरा नहीं उतरता उसे हम अपने पास नहीं रहने देना चाहते। इसलिए जानवर हमें जंगल में या किताबों में ही अच्छे लगते हैं। जानवर आना भी नहीं चाहते आपके पास। हम उनके जंगलों पर कब्ज़ा कर रहे हैं तो वो कहां जाएंगे। मेरे घर के आसपास कई किस्म के सांप थे पर उन्होंने कभी किसी का नुकसान नहीं किया। सांप आते तो पापा कहते हम उनके घर में रहते हैं। ये पहाड़ी उनका घर है, हम बाद में आए। मधुमक्खियों ने कई बार काटा। भंवरे को बांस के भीतर घर बनाते देखा है कभी? कमाल का इंजीनियर होता है। जामुन के पेड़ पर एक हरे रंग की इल्ली होती है। इतने चटकीले रंग गोविंदा भी नहीं पहनता। छू ले तो तेज जलन होती है। ये उसका अपना तरीका है बचने का। लेडीबग, तितलियां, एक बहुत ही प्यारा गाजरी रंग का कीड़ा, एक ऐसा कीड़ा जिसकी पीठ पत्ते की तरह होती है, रंग बदलता गिरगिट, रात में चमकते जुगनू ये सब बहुत सुलभ थे पर अब नहीं दिखते। क्यूंकि ये प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं साथ मिलकर। खास किस्म की मिट्टी और पेड़ों के साथ। इनके अपने मोहल्ले होते हैं। आप एक को भी हटाइए तो दूसरा खुद अपना घर छोड़ देगा या मर जाएगा। केंचुएं मिट्टी से गायब हैं, जुगनू केवल कहानियों का हिस्सा रह गए हैं। भंवरे और मधुमक्खियां भी रूठ रही हैं। हम कितना भी गमले में पेड़ उगा लें पर जब तक इन सभी प्राणियों को नहीं समझेंगे हमारा कुदरत से जुड़ाव अधूरा है। इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने घरों में पेड़-पौधे उगाना बंद कर दें। हरियाली रहेगी तो इनके मोहल्ले भी रहेंगे, पर कीड़े मकोड़े ,जीव-जंतुओं से भी प्यार करना सीखें। इनसे डरें नहीं। यह भले ही आपको क्यूट न लगें पर ये हमारे पर्यावरण का अहम हिस्सा हैं। हमें इनसे भी दोस्ती करनी चाहिए।

 

रजनी सेन

पत्रकार एवं पर्यावरण प्रेमी

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