यूं तो इस बात को कई साल हो गए हैं, लेकिन आज भी ज़हन में वो वाक़्या ताज़ा है। ‘ज़िन्दगी लाइव’ के एक ख़ास एपिसोड की तैयारी चल रही थी। कुछ चुनिंदा मेहमानों के मैसेज मंगवाने थे। मैंने नैना ( बदला हुआ नाम) को कॉल लगाया। नैना मुझे अच्छी तरह से याद थी। सरल स्वभाव, लेकिन किरदार में ग़ज़ब का साहस। पति आदित्य (बदला हुआ नाम) के बुरे वत्त में उसकी सबसे बड़ी ताक़त बन कर खड़ी थी। ‘ज़िंदगी लाइव’ के शूट से पहले केस स्ट्डी से घंटों फ़ोन पर बातें होती थीं, मुलाक़ातें होती थीं। एक पूरा दिन प्री शूट वीडियो बनाने में लग जाता था। 100 एपिसोड प्रोड्यूस करने के बाद ये तो मैं पूरे यक़ीन के साथ कह सकती हूं कि नैना की आंखों में बहुत दर्द था और आदित्य के लिए बेपनाह मुहब्बत।

मैं अक्सर केस स्टडी के कॉल ऑफ़िस के टॉप फ्लोर पर बनी पैंट्री से करती थी, क्योंकि वहां सुकून से बात हो जाती थी। मैंने नैना को फ़ोन लगाया। तीन चार रिंग के बाद उसने मेरा फ़ोन उठा लिया। नॉर्मल हाय हैलो के बाद मैंने बात छेड़ी, जिसके लिए उसे फ़ोन किया था। वो थोड़ा झिझकी, और फिर शर्मिंदा लहजे में बोली “मेरा और आदित्य का डिवोर्स हो रहा है” । मैंने जो सुना उसपर यक़ीन नहीं हुआ और सिर्फ ‘ oh okay ‘ बोल सकी।

दरअसल, एक कार एक्सिडेंट के बाद आदित्य गंभीर मानसिक बीमारी के शिकार हो गए थे, और डॉक्टर उनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ चुके थे। कोई करिश्मा ही उन्हें स्वस्थ कर सकता था। नैना 28-30 साल की रही होगी। मैंने उसे आदित्य पर न्यौछावर होते अपनी आंखों से देखा था। ससुराल वाले बहू के गुणगान करते नहीं थकते थे। आज जब नैना ने ये कहा तो चंद लम्हों के लिए मैं ख़ामोश हो गई। सच तो ये है कि मैं शॉक्ड थी। नैना खुद ही आगे बोली, जो कुछ इस तरह से था,  “मेरे भाई मुझे वहां से ले आए। पहले तो मैं नहीं आना चाहती थी, लेकिन फिर सभी ने मुझे समझाया। फ़रहीन, तुम भी एक लड़की हो, शायद तुम समझ सको। ज़िंदगी बहुत लंबी होती है। आदित्य कभी सही नहीं हो सकते। शादी तो एक साथी के लिए होती है, आदित्य अब एक नॉर्मल इंसान की तरह कभी नहीं हो सकेंगे, तो मेरी ज़िंदगी में वो कमी कभी पूरी नहीं हो सकती”।

फिर नैना ने मुझसे एक सवाल किया, “क्या तुम्हें लगता है मैंने ग़लत किया ?” … सच तो ये है, कि उस वक्त मैं सकते में थी। मैंने बिने सोचे कहा, “आपने सोच समझ कर ही फै़सला लिया होगा”।  मेरा ये कहना था कि वो फ़ोन पर रोने लगी। अक्सर लोगों के लिए ग़ैरों का अप्रूवल भी जरूरी होता है। खै़र, मैंने उसके बेहतर भविष्य की कामना करते हुए फ़ोन काट दिया ।

पैंट्री में एक लोहे की जीना था, जिसपर मैं बैठी थी, और इस बातचीत के लगभग आधे घंटे बाद तक मैं वहीं बैठी रही। दरअसल मैं समझ नहीं पा रही थी, कि मेरी नज़र में नैना के सवाल का क्या जवाब था।  और सच तो ये है कि आज सालों बाद भी मुझे नहीं मालूम कि उसने जो किया वो सही था या ग़लत।

मानसिक विकलांग पति की सेवा करने वाली नैना को ‘ज़िंदगी लाइव’ ने कार्यक्रम में बुलाया, और उसे सम्मानित किया। सभी ने सराहा, वाह वाही हुई …  फिर हम सब ज़िंदगी के साथ आगे बढ़ गए, लेकिन नैना की दुनिया वहीं ठहर गई थी… वो कम उम्र थी … और आगे लंबी ज़िंदगी … शायद वो थक गई थी… शायद बहुत अकेली थी … शायद इसीलिए उसने ये फै़सला किया …

मन का एक दूसरा कोना ये भी कहता है … शादी तो सुख दुख के साथी के लिए ही है ना… फिर बुरे वक्त में ऐसे छोड़ देना क्या सही है?

फिर मन में ये बात भी आती है कि क़ानूनन मानसिक बीमारी के आधार पर तलाक़ हो सकता है। यानि बड़े बड़े ज्ञानियों ने भी कोई वजह समझी होगी।

पता नहीं क्या सही है और क्या ग़लत … पर यही तो है ज़िंदगी … जहां अक्सर ऐसा होता है कि आपका सही, दूसरे के लिए ग़लत हो सकता है। क्या हम इतनी सी कोशिश कर सकते हैं कि जजमेंटल ना हों। ‘ज़िंदगी लाइव’ के चार सीज़न प्रोड्यूस करके मैंने सबसे बड़ी जो बात समझी वो यही थी कि हर बात सही और ग़लत के पैमाने पर नहीं रखी जा सकती।

अपने एक दोस्त से कभी मैंने बशीर बद्र का एक शेर सुना था, जिसकी लाइनें मुझे सही से याद नहीं थीं। मैंने पैंट्री से निकलते हुए उन्हें फ़ोन किया और वो शेर पूरा याद दिलाने को कहा। अपने दिलचस्प अंदाज़ में उन्होंने पढ़ा –  “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता।”

 

~ फ़रहीन फातिमा

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