सब कुछ देखने से शुरू होता है। यह विज्ञान है। बीबीसी की साइंस सीरीज़ ‘Secrets of your Body’ में इस विषय पर एक शानदार शोध परक कार्यक्रम दिखाया गया। इसमें बताया गया कि कोई चीज़ आपको अच्छी लगेगी यह आपकी पहली नज़र तय कर देती है। आप जिस चीज़ को पसंद करते हैं उसे बार-बार देखते हैं और उसमें आपकी दिलचस्पी बढ़ती जाती है। बच्चों के मनोविज्ञान से जुड़े हुए लोग भी जानते हैं कि बच्चों को पढ़ाने से पहले उनके विजुअल्स स्किल्स पर काम किया जाता है। वे देख-देख कर सीखते हैं। बाहर जाकर खेलने के साथ ही, पेशेवर रूप से एकेडमी से जुड़ने के साथ-साथ बच्चों को देखने का भी मौका मिलना चाहिए। लाइव मैच मैदान और टीवी पर। उन्हें हार और जीत को समान रूप से लेने दें। उन्हें दुनिया भर की बेहतरीन टीमों और खिलाड़ियों से जुड़ने दें।

भारतीय ओलंपिक खिलाड़ी जब ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते तो हमारे दिल टूट जाते हैं और हम ओलंपिक में भारत के दयनीय प्रदर्शन पर लंबे-लंबे लेख लिखते हैं। लेकिन हम ख़ुद कितना स्पोर्ट्स देखते या अपने बच्चों को देखने देते हैं। जब कोई खिलाड़ी जीतता है तो हम आनन-फानन में उससे जुड़ी हर बात जानना चाहते हैं। यह आपके लिए पल भर की कहानी है पर उस खिलाड़ी की बरसों की मेहनत है। जिसे उसने हर दिन गढ़ा है।

हम हर खेल को मैदान में जाकर नहीं सीख सकते लेकिन बच्चे देख-देख कर उसके लिए सेंस डेवलप करते हैं। और उसमें उनकी दिलचस्पी बढ़ती जाती है। मीरा बाई चानू हो या हमारी महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी। सबकी यात्रा देखने से ही शुरू हुई। ये सारे एकलव्य अपने-अपने द्रोण से मिलने से पहले और कई तो बाद तक पहले देख कर फिर उसी से सीखकर अपना खेल निखारते रहे। और मीरा बाई चानू हो या पी वी सिंधु। रियो ओलंपिक के बाद से वे लगातार मेहनत कर रही हैं। मीरा बाई चानू रियो के बाद ठोकर खाकर संभली ही नहीं उठकर आसमान छू लिया। वे चार साल में केवल दो बार अपने घर गईं। अपने इवेंट से पहले भी दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों की क्लिप देखी। उन्हें इस मयार पर पहुंचना ही था।

और रही बात देश में खेल संस्कृति की। तो वो सोशल मीडिया पर केवल ओलंपिक के वक्त जागने से नहीं बनेगी। हम कितना अपने बच्चों को इन खेलों से जोड़ पाते हैं। कितने बच्चों के माता-पिता, तीरंदाजी या वेटलिफ्टिंग को बतौर करियर तवज्जो देते हैं। आप देखने दीजिए उन्हें। दिलचस्पी तभी बढ़ेगी। सब कुछ बचपन से ही शुरू होता है। जितनी जल्दी हम बच्चों को खेल का माहौल दे पाएंगे उतना बेहतर होगा। केवल क्रिकेटर का नहीं इन खिलाड़ियों का नाम भी बच्चों की जुबान पर होना चाहिए। इनके पोस्टर्स भी हमारे घरों की दीवारों पर होना चाहिए। इनकी कहानियां सिलेबस का हिस्सा होना चाहिए और अखबार का जो खेल का पन्ना है सबसे पहले सुबह उठकर जब आपका बच्चा उसकी तरफ बढ़े तो समझिए वो खेल में रुचि ले रहा है। जिस तरह एक शिल्पी रोज़ अपनी मूर्ति को गढ़ता है, एक लेखक रोज़ कुछ न कुछ लिखता है, एक कुम्हार रोज़ कुछ न कुछ रचता है हमें हर दिन अपने बच्चों की खेलों में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए कुछ करना होगा। उन्हें देखने दीजिए, खेलने दीजिए, बहस करने दीजिए, खेलों पर गीत कविता, डिबेट करने दीजिए और फिर रुचि के हिसाब से उन्हें पेशेवर रूप से जुड़ने दीजिए। केवल स्पोर्ट्स पीरियड में योग करवाकर बच्चे चानू, सिंधु या योगेश्वर दत्त नहीं बन पाएंगे। हां इन खिलाड़ियों के खेल क्रिकेट की तरह कम दिखाए जाते हैं पर सारा परिदृश्य बदल रहा है अब हर बड़ी प्रतियोगिता दिखाई जाती है। इन खेलों सी जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां और तकनीकी ज्ञान भी यूट्यूब से लेकर हर जगह मौजूद है। आप अगर यह सोचते हैं कि बिना देखे आप उनकी दिलचस्पी जगा सकते हैं तो आप को भी उनके साथ सुबह सुबह उठकर उन स्थानों पर जाना चाहिए जहां यह खेल खेले जा रहे हैं और वह एक लंबी प्रक्रिया है। इसलिए अपने घर के पास के मैदानों में, टीवी पर जहां कहीं भी यह खेल हो रहे हों बच्चों को देखने दीजिए। और सुनिए बच्चे बेवकूफ नहीं हैं। आप उन्हें ठीक से गाइड करेंगे तो वे अच्छी चीजें भी देखेंगे। इस वक्त आप उन्हें देखने से रोकेंगे और 14-15 साल के होने पर जबरदस्ती दिखाएंगे तो वे दर्शक के तौर पर तो जुड़ जाएंगे पर एक खिलाड़ी के तौर पर उनका दिल इन खेलों के लिए नहीं धड़केगा।

कोरोना के कारण वैसे ही खेल गतिविधियां सीमित हैं लेकिन अगले बीस सालों में और आगे आने वाले ओलंपिक खेलों के लिए भारत को बहुत ध्यान से और संभलकर अपनी तैयारी करनी चाहिए क्योंकि अब जिस्मानी लड़ाई के साथ मानसिक खेल भी अहम हो गया है। बच्चे बहुत उलझन में हैं और अगर इस वक्त हमने उनसे देखकर सीखने का मौक़ा भी छीन लिया तो हो सकता है उनकी रुचि ही खत्म हो जाए। तो केवल ओलंपिक के वक्त मत जागिए। पत्रकार हैं और लेखक हैं तो लगातार इन खिलाड़ियों के बारे में लिखिए, बोलिए उन्हे फॉलो कीजिए। और अभिभावक हैं तो उन्हें अभी से खेल से जोड़िए। देखने दीजिए, खेलने दीजिए, विमर्श करने दीजिए। खिलाड़ी के साथ-साथ इस देश को अच्छे और सच्चे दर्शकों और समर्थकों की भी ज़रूरत है।

~Rajani Sen
Anchor & Journalist

<script data-ad-client=”ca-pub-3136333229544045″ async src=”https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js”></script>

Leave a Comment

Your email address will not be published.