बच्चे संगीत से सीखते हैं, बोल समझते हैं, याद रखने की कोशिश करते हैं और संगीत उनकी जिज्ञासा को बढ़ाता है।
अद्वैत को शुरू से ही आध्यात्मिक संगीत सुनाकर सोने की आदत डाली। शुरुआत में ख़ुद से भी लोरियाँ सुनाईं और साथ ही संगीत भी। पहले प्लेन म्यूज़िक से शुरू किया, जैसे-जैसे बड़ा हुआ बोल के साथ वाला संगीत सुनाया। जिसमें कई भजन, प्रार्थनाएँ आदि शामिल हैं। अद्वैत बॉलीवुड म्यूज़िक नहीं जानता, ना ही आइटम सॉन्ग। उसके लिए संगीत का अर्थ प्रार्थनाएँ, कविताएँ आदि हैं। कुछेक प्रार्थनाएँ और श्लोक उसे याद हो गए हैं। पिछले दिनों वह अपने पापा के साथ कहीं गया तो गाड़ी में “जो बीत गई सो बात गई” बज रहा था। हरिवंशराय बच्चन की इस कविता को कुमार विश्वास ने संगीत के साथ सुंदर तैयार किया है। समर्थ उसे लूप में सुनते हैं। अद्वैत घर आकर वही गाने लगा “जो बीत गई सो बात गई”। मैंने पूछा “ये कहाँ से सीखा?” तो बोला “गाड़ी में” अब वो जब भी गाड़ी में जाए इसी को सुने। कुछ दिनों से सोते समय भी इसी को सुनने की माँग कर रहा है। आज जब यह चल रहा था तो मैंने नोटिस किया कि वह कई सारी पंक्तियाँ दोहरा रहा है। कुछ उसे याद भी हो गई हैं।
सुनते-सुनते कुछ ठहरकर कविता में आए कुछ शब्दों के लिए उसने सवाल किए, “पछताता क्या होता है?”
मैंने समझाया, “जैसे आप बहुत तेज भागते हो फिर गिर जाते हो तो चोट लगती है ना, तो आपको लगेगा कि आपको थोड़ा धीरे चलना चाहिए था, ये समझना ही पछताना हुआ।”
मालूम नहीं मैं उसे कितने अच्छे से समझा पाई और उसे कितने अच्छे से समझ आया लेकिन उसने फ़ौरन दूसरा सवाल किया, “जीवन क्या होता है?”
मैंने कहा, “हम जो जी रहे हैं, पहले आप छोटे थे, फिर थोड़े बड़े हुए, फिर और बड़े हो जाओगे, सुबह से शाम तक जो हम करते हैं, ये सब जीवन है”
उसने अगला सवाल किया, “ममता क्या होता है?”
मैंने कहा, “मम्मा जो आपसे प्यार करती है उसे ही ममता कहते हैं”
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इसके बाद उसे नींद आने लगी थी, उबासियाँ लेने लगा था। कुछ देर में सो गया। जाने मैं उसके सवालों के ठीक से उत्तर दे भी पाई या नहीं लेकिन मुझे इतना समझ आया कि बच्चे नासमझ नहीं होते। बचपन से ही हम जैसे चाहें उनकी रुचि वैसी बना सकते हैं। बच्चन साहब की इस कविता को वह याद करना चाहता है। मुझसे कहता है याद करा दो। मैंने मन बनाया है कि इसके बाद उसे कई अन्य कविताएँ जो सरल भाषा में होंगी याद कराउंगी। अभी भले ही वह सबके अर्थ को, मर्म को ना समझे लेकिन इनके प्रति बनने वाला उसका रुझान, और भावार्थ समझने के लिए पैदा होने वाली ललक उसके भीतर नींव तैयार करेगी।
मैं शुक्रगुज़ार हूँ कुमार विश्वास की कि हिंदी को सरलतम रूप में तीन पीढ़ियों तक पहुँचाने का काम वे कर रहे हैं। उनसे आग्रह है कि ऐसी कई और कविताएँ संगीत के साथ लाएँ जो बच्चों को याद कराई जा सकें।
~Ankita Jain
Ex Research Associate, Author, Director at Vedic Vatica (Organic Agro Firm)
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