कुछ देर के लिए प्रकृति को अगर मां समझें तो ज़रा अब से कुछ महीने पहले उसकी हालत को नज़र के सामने लाने की कोशिश कीजिए। बेतहाशा प्रदूषण और इंसान की बेरुखी ने पूरी ही दुनिया में कुदरत की सूरत बिगाड़ दी थी। जंगलों में जानवर परेशान थे और आबो-हवा बुरी तरह बदल रही थी। खुद इंसान का भी दम घुट रहा था। क्या चीन, क्या भारत, क्या ऑस्ट्रेलिया। कहीं जंगलों की आग के ज़रिए प्रकृति मां चीख-चीख कर कह रही थी मुझ पर ध्यान दो… तो कहीं धुंध के ज़रिए उसकी उखड़ती सांसों को हम सुन रहे थे। पर हम इंसान जो कुदरत के बच्चे हैं, उसकी हर चीख-पुकार, उसकी ख़राब होती सेहत से आंखें मूंदे अपनी-अपनी ज़िंदगियों में व्यस्त थे। बस कहते रहते हमें कुछ करना चाहिए, पर करते नहीं थे।


फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। कोरोना संक्रमण के कारण पूरी दुनिया लॉकडाउन में चली गई। इंसान घर में कैद हो गया और कुदरत ने अपने आपको हील करना शुरू कर दिया। कुछ ही महीनों के भीतर हमने पाया कि प्रकृति ने अपने आपको इस बेहतर ढंग से हील किया जो इंसान सालों में भी नहीं कर सका था। कई जगह नदियों का पानी साफ़ हुआ, आसमान पर तारे नज़र आने लगे और पंछी नए सुर-ताल में चहचहाने लगे। भारत में तो कई जगह से हिमालय की चोटियां नज़र आने लगी। दरसअल लॉकडाउन एक तरीके से प्रकृति मां का मी-टाइम (Me time) है, जिसमें प्रकृति अपने आपको दोबारा जी रही है, खुद में नए रंग भर रही है।

ठीक उसी तरह हर मां को इस मी-टाइम की और इस देखभाल की ज़रूरत होती है। एक ऐसा वक्त जब बच्चों और घर की ज़िम्मेदारियों से दूर वो केवल अपने बारे में सोचे,अपने मन का काम करे। वह सब करे जिससे उसके शरीर और मन को आराम मिले, यानि कभी-कभी कुछ भी न करे। ताकि वह जब दोबारा घर, बच्चे और अपने काम से जुड़े तो किसी तरह की कड़वाहट या थकान से परेशान न हो। और अगर उसे यह वक्त नहीं दिया जा रहा है तो बिल्कुल कुदरत की तरह उसे यह वक्त छीनने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि यह उसका हक है। प्रकृति ने हम मांओं को भी साफ संदेश दिया है कि अपनी सेहत सुधारने के लिए कभी कभी सख़्त होना बहुत ज़रूरी है। यह मी-टाइम, यह अपना समय मांगना स्वार्थी होना नहीं है, बल्कि एक मां की मानसिक सेहत के लिए बेहद ज़रूरी है। और ये मां केवल छोटे बच्चों की मां ही नहीं हर उम्र की मां हो सकती है। हर औरत मां होने से पहले इंसान है। उसे अभिव्यक्ति का और अपना ध्यान रखने का पूरा अधिकार है। आपने पिछली बार अपनी मां या पत्नी को कब उसकी रुचि का काम करते हुए देखा था। अपने आसपास जो मां है उसे ध्यान से देखिए। क्या उसे उसके निजी वक्त और देखभाल की ज़रूरत नहीं। हो सकता है उसके अंदर भी एक डांसर, कवियत्री, गायिका या खिलाड़ी छिपी हो। उसे बाहर आने में मदद कीजिए। हो सकता है ज़िम्मेदारियों के बोझ में दबकर वह सब कुछ भूल गई हो या उसे मौका नहीं मिल रहा हो। उसे उसकी पसंदीदा साड़ी पहन मुस्कुराने दीजिए, उसकी पुरानी डायरी के पन्ने खोलिए। उससे पूछिए अब वो शतरंज क्यों नहीं खेलती। वो सख़्ती से लॉकडाउन के ज़रिए अपना मी-टाइम छीने, उससे पहले ही उसकी देखभाल शुरू कीजिए।

आपको कुछ मांओं के उदाहरण देना चाहूंगी। मैं खुद एक पत्रकार और दो बच्चों की मां हूं। बड़े बेटे के वक्त मैं उसकी देखभाल और अपनी नौकरी में ही सारा वक्त निकाल देती थी। अपने बारे में सोचती ही नहीं थी। धीरे धीरे मैं अवसाद में चली गई। मेरे दोस्तों ने उससे बाहर निकलने में मदद की और जब थोड़ा ठीक हुई तो मैंने तय किया कि दिन में कुछ वक्त केवल अपने लिए निकालूंगी। मेरे पति और सासू मां ने इसमें मेरी मदद की। मैंने उसी दौरान उर्दू भाषा सीखी जिससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मुझे अच्छा महसूस हुआ।

अर्पिता यादव एक किशोर बेटे की मां हैं, जो स्पेशल नीड बच्चा है। अर्पिता सिंगल मदर हैं, लेकिन बताती हैं जब ज़िम्मेदारियों के तूफान दिमाग पर हावी हो जाते हैं तो वे अपने बेटे को किसी दोस्त के साथ छोड़कर कार लेकर निकल जाती हैं। थोड़ी देर का ही सही यह मी-टाइम उनके उलझे दिमाग को बहुत राहत देता है।

साठ वर्षीय आशा मित्तल के बच्चे सैटल्ड हैं, पर घर की ज़िम्मेदारियां कहां खत्म होती हैं। फिर भी इस व्यस्तता के बीच अपने नाचने के जुनून को ज़िंदा रखती हैं। उनके डांस वीडियो सोशल मीडिया पर औरों को भी प्रेरित करते हैं।
हर मां एक औरत है और हर औरत एक इंसान जिसे अपने लिए वक्त चाहिए। उसे कुछ देर अकेला भी छोड़िए खुद से बातें करने देने के लिए। यहां अकेले से मतलब उसे उन कामों से मुक्त करना है जो वह मशीन की तरह बस आपकी ख़ुशी के लिए करती जा रही है। वरना मां के पास इतनी ताक़त है कि वो सख़्ती से खुद को हील कर सके। पर अगर आपको मौका मिल रहा है तो आप क्यों नहीं सोचते एक बार उस मां के बारे में भी ।अपने आसपास एक मां को उसका मी-टाइम ढूंढने में मदद कीजिए। यकीन मानिए आपको भी अच्छा लगेगा।

 

रजनी सेन
एंकर एवं पत्रकार

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